इस पत्थर के स्पर्श मात्र से लोहा सोना बन जाता है!
पारस पत्थर के बारे में कहा जाता है कि इसे लोहे से स्पर्श कराने पर लोहा सोना बन जाता है। इसके बारे में कई किवंदतियां हैं। कहा जाता है कि राजा चन्देल के पास पारस पत्थर था जिसे एक लुहार ने दिया था। इस पत्थर के लिए कई युद्ध भी हुए। एक और किवंदती के अनुसार 13 वीं सदी के वैज्ञानिक और दार्शनिक अल्बेर्टस मानुस (Albertus Manus) ने इसकी खोज की थी जो जर्मन के थे। पारस पत्थर की चर्चा न सिर्फ भारत भर में ही सीमित है बल्कि इसकी चर्चा विदेशों में भी है। इन सब बातों में कितना सत्य है यह जान पाना बेहद कठिन है। शास्त्रों में भी इस पत्थर के बारे में कई उल्लेख किया गया है लेकिन पारस पत्थर अभी भी एक पहेली है।
कैसा दिखता है यह
पारस पत्थर के बारे में बहुत से लोगों ने सुना है लेकिन यह दिखता कैसा है यह कोई नही जानता। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो ऐसा कोई एटॉमिक सरंचना नही है जो लोहे को स्पर्श मात्र करने से सोना बना दे। लेकिन दुनिया के अधिकांश धर्म में इसके बारे में लिखा गया है। इसमें सभी की अलग राय है किसी में इसे लाल, जामुनी तो किसी में पारदर्शी बताया गया है। कुछ के अनुसार यह काले रंग का सुगन्धित पत्थर है तथा यह बेहद दुर्लभ वस्तु है। हालांकि यह पत्थर दिखता कैसा है? इसका स्वरूप कैसा है? ये सभी प्रश्न एक अबुझ पहेली बना हुआ है। लेकिन यह भी प्रकृति निर्मित प्राकृतिक वस्तु है।
कहाँ है असली पारस पत्थर
कुछ लोगों का मानना है कि पारस पत्थर भारत मे रायसेन किले में मौजूद है जो मध्यप्रदेश, भोपाल में स्थित है जिसका रखवाली जिन्न करते हैं। पारस पत्थर के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए कई प्रकार के शोध हुए, लेकिन इस पत्थर के संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सका। कहते हैं इस पत्थर के बारे में कोई नही जान पाया और जिसने जाना वह अब इस दुनियां में नही है। लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि ऐसा पत्थर परमात्मा ने सभी को दिया है। दृढ़ निश्चय, आत्म संयम, कर्म निष्ठा और जिज्ञासा ऐसे गुण हैं जिनके द्वारा वह पारस पत्थर के समान बन जाता है। इन सभी गुणों के मिलने से वह बुद्धिमान व्यक्ति जिसे छू ले वह सोना बन जाता है। मतलब वह जिस कार्य को करता है उसमे उसे अपार सफलता मिलती है।
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